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ऋषि-महात्मा तप करकै, ज्ञान-गंग मै न्हागे / ललित कुमार

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ऋषि-महात्मा तप करकै, ज्ञान-गंग मै न्हागे,
श्रीहरि मै ध्यान लगा, परम-पदवी पद पागे || टेक ||

अनसुईया संग ऋषि अत्री नै, श्री हरी गुण गाये थे,
प्रसन्न होकै तीनु देवता, वर देवण नै आये थे,
ब्रह्मा-विष्णु-शिवजी तीनो, पुत्र रूप मै पाऐ थे,
दुर्वाषा संग दत्तात्रेय, चन्द्रमा बण छाये थे,
तप के बल पै ऋषि अत्री, देवो के पिता कुवाह्गे ||

कर्दम मुनि नै करी तपस्या, आसण लाया बण मै,
ईश्वर के गुण गाण लगे, उसकी लागी नीत भजन मै,
विष्णु जी नै दर्शन दे दिए, हुआ ज्ञान चान्दणा मन मै,
दिया वरदान जन्म ल्यु तेरै, न्यू फ़िक्र मेट दिया छन मै,
कपिल रूप मै विष्णु होगे, ऋषि कर्दम नाम कमागे ||

रघुकुल मै जन्मे दशरथ, वशिष्ठ गुरु मनाया,
सूर्यवंशी नरेश महात्मा, ना पुत्र का सुख पाया,
श्रंगी ऋषि की गया शरण मै, पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया,
यज्ञ तरु से चार जन्मे, इस पन्मेशर की माया,
दशरथ कै घर खुद नारायण, राम बणके आगे ||

ललित कुमार नै ज्ञान ले लिया, गुरु जगदीश रुखाला,
कंस कैद मै बैठा वसु, हरी नाम की रटै माला,
कृष्ण पक्ष की आठंम के दिन, होया कृष्ण-काला,
देवकी उदर से विष्णु होग्या, न्यू खुल्या भ्रम का ताला,
उस वृन्दावन मै श्री कृष्ण जी, नन्द की गऊ चरागे ||