फ़ज़ाएं धुंध से सरगोशियों की और अट जाएं
बदन की ये चटानें मुमकिना हद तके सिमट जाएं
समंदर-तह तलक जाना बहुत आसान हो जाये
अगर गौहर भरी ये सीपियाँ इक पल को हट जाएं
बता सकता है कोई वो मुसाफ़िर कौन होते हैं
जो इक रस्ते से आएं और दो सिम्तों में बंट जाएं
न जाने आने वाला वक़्त क्यों दुश्मन सा लगता है
हवाएं आ के फिर औराक़ माज़ी के पलट जाएं
मुनासिब वक़्त है जिन्से-सुख़न को बेच देने का
ख़बर किसको है इसके भाव कब और कितने घट जाएं।