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तोताराम / कुमार मुकुल

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तोताराम

शाकाहार से ही चला लेते काम

पर सोचकर कि अहिंसक हैं वे

भूलकर भी ना दें अपनी अंगुलियाँ

उनके लाल-लाल ठोरों तक

नहीं तो निकाल देंगे वे कुतरकर

आपका लाल-लाल खून


तोताराम पढ़ते हैं रामायण

बाँचते है बेद

पिंजरे से निकलकर बार-बार

बता जाते हैं आपका भाग्य

क्या अपना भी जानते हैं तोताराम ?


कोयल की कूक

माया है उनके लिए

वे ससुरी दिखती ही नहीं कहीं

जाने होती भी हैं या नहीं

गलीज गौरैयों पर तो कान भी नहीं देते तोताराम

नीच - कीड़े गटखती है


सोने की कटोरी में पानी पीते हैं तोताराम

चांदी के सीखचों में बन्द रहते हैं

परम संतुष्ट रहते हैं तोताराम

ग़ुलामी क्या होती है नहीं जानते तोताराम

ग़ुलामी भ्रम है उनके लिए

वे जानते हैं कि आत्मा को

ना आग जला सकती है न पवन सुखा सकता है

कि जीव अविनाशी है

रही-मिट्टी के शरीर की बात

तो उसका ग़ुलाम बनना क्या और आज़ादी क्या

उसे तो मिल ही जाना है एक दिन मिट्टी में


केवल वेद-कुरान ही नहीं पढ़ते तोताराम

साइत-कुसाईत देखकर ग़ाली भी पढ़ सकते हैं

भौंक सकते हैं कुत्ते की तरह

पुकार कर आपका नाम ख़ुश कर सकते हैं आपको

परमसत को रट चुके हैं तोताराम

उनका सत अपौरुषेय है

वे शंका भी नहीं कर सकते कि

सत स्त्रौय भी हो सकते हैं

क्षिति-पावक-समीर

सबको जानते हैं तोताराम

वे जानते हैं जनक की साधुता

याज्ञवल्क की मीमांसा भी याद है उन्हें

हिटलर के शाकाहार की भी सूचना है

बाक़ी तो ईश्वर की माया है

राम जी बचपन में हिरणों को मार-मारकर

स्वर्ग पहुँचाया करते थे

कौन जाने हिटलर भी यही करता हो

सोचते हैं तोताराम


शंका तो छू भी नहीं गई तोताराम को

बस समय से

मिलता रहे चना-चबेना

सोने की कटोरी में

फिर आपका अहित

नहीं सोच सकते तोताराम

वो आपकी भाषा बोलेंगे

आप चाहेंगे तो कुत्ते की तरह भौंकेंगे

चाहेंगे तो वेद-कुरान पढ़ेंगे

अपनी इच्छा कैसी ?


इच्छाएँ तो ग़ुलामी पैदा करती हैं

तोताराम को

आत्मा की आज़ादी का भान है !