Last modified on 17 सितम्बर 2018, at 16:48

हमारा प्यार / सुरेन्द्र स्निग्ध

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:48, 17 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेन्द्र स्निग्ध |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैंने कहा — मैं बाघ हूँ, बाघ
खा जाऊँगा तुम्हें
चबा डालूँगा बोटी-बोटी
उदरस्थ कर लूँगा
तुम्हारा अस्तित्व

वह सहमी
बड़ी-बड़ी आँखों में
उतर आया
किसी गली-गलियारे का छिपा भय
एक अपूर्व दहशत
करुणामयी आँखों से
मुझे देखा एक बार
फिर तुरन्त सिमट गई
मेरी बाँहों में
ज़िन्दगी की पूरी
गर्माहट के साथ

अब वह थी
युगों से ’भूखा बाघ‘
मैं था अवश
लाचार
बँधा हुआ मेमना
करुणामयी आँखों से
मैंने देखा
उसके प्यार का हिंस्र रूप
बड़ी-बड़ी आँखों से
उतरती आग की लाल लपटें
खा गई मुझे चटपट
लुप्त हो गया मेरा अस्तित्व

हमारा प्यार
बाघ और मेमने का
प्यार था