जिस तरह उम्मीद से ज़्यादा मिल जाने के बाद
माँगनेवाले को चिन्ता नहीं रहती
कि वह कहाँ खाएगा या कब
या उसे भूख लगी भी है या नहीं
वही आलम उसका है
काफ़ी दे दिया जा चुका है उसके कटोरे में
कहीं भी कभी भी बैठकर खा लेगा जितना मन होगा
जल्दी क्या है
बच जाएगा या खाया नहीं जाएगा
तो दूसरे तो हैं
और नहीं तो वही प्राणी
जो दूर बैठे उम्मीद से देख रहे हैं