इतनी याद किसी की मुझको आई नहीं कभी
जितनी याद तुम्हारी मुझको आया करती है।
तुम मुझमें रच गईं कि जैसे मेहंदी गोरे हाथों पर
जैसे हृदय मुग्ध हो जाता है बच्चों की बातों पर
तुम आती हो याद कि जैसे दिया जले वीरानों में
कोई परिचित चेहरा जैसे दीख जाये बेगानों में।
याद तुम्हारी कुछ ऐसे आती है सूनी रातों में
जैसे दबे पांव छत पर चांदनी उतरती है
तुमसे पृथक स्वयं को अब अनुभव करता हूँ मैं
छोटे से छोटी पीड़ा से भी डरता हूँ मैं
तुम्हें कवच की भांति वक्ष पर धार लिया मैंने
हाय सभी से भिन्न अनोखा प्यार किया मैंने।
याद तुम्हारी आती लिए हुए संगीत मृदुल
जैसे बांस-वनों से होकर हवा गुज़रती है।
कुछ यों उत्सुक, ताज़ा अनुभव करते प्राण उदास, कसे
ज्यों पड़ोस के ख़ाली घर में नया किरायेदार बसे
याद तुम्हारी जैसे लहर रेत पर सजल चित्र आँके
कोई प्यारी शक्ल सामने की खिड़की में से झांके।
रूप तुम्हारा मेरे दृग में कौंध-कौंध जाता
जब जब किसी गौर मस्तक पर अलक बिखरती है