ज़िंदगी में ग़म उठाने का मज़ा कुछ और है
चोट खाकर मुस्कराने का मज़ा कुछ और है
कौन कहता, है ज़रूरी जंग जीती जायें सब
प्यार में तो हार जाने का मज़ा कुछ और है
ख़ुशगुवारी में गज़ल गाना कोई हैरत नहीं
रंज़ोग़म में गुनगुनाने का मज़ा कुछ और है
नफ़रतो की तीरगी से किसको क्या हासिल हुआ,
प्यारके दीपक जलाने का मज़ा कुछ और है
फ़र्क बेटी और बेटे में नहीं होता है कुछ
बेटियों को भी पढ़ाने का मज़ा कुछ और है
हो गये काबिल अगर रुख़्सत न होना देश से
मुल्क में अपने कमाने का मज़ा कुछ और है
बँट गये इंसान मज़हब में अगर तो क्या हुआ
'देव' सबसे दिल मिलाने का मज़ा कुछ और है