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आपकी महफ़िल नहीं भायी कभी / रंजना वर्मा

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आप की महफिल नहीं भायी कभी ।
कोई भी मंजिल नहीं पायी कभी।।

यूँ बहारें तो। सदा। देती रही
पर कली दिल की न मुस्काई कभी।।

आपके अपने बहुत जो खास थे
दे गए हैं वो ही रुसवाई कभी।।

भूल बैठे वो पुरानी बात कह
की थी हमसे आशनाई भी कभी।।

रेगजारों में भटकते सोचते
थी घटा पानी भरी छायी कभी।।

एक वादे पर रहे जिंदा मगर
बात यह तुमको न बतलायी कभी।।

याद के आगोश में सोये रहे
वस्ल की जन्नत नहीं पायी कभी।।