Last modified on 4 अक्टूबर 2018, at 22:42

अक्कड़-बक्क्ड़... / रामकुमार कृषक

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:42, 4 अक्टूबर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामकुमार कृषक |अनुवादक= |संग्रह=फ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अक्कड़-बक्कड़ बम्बे बौ
अस्सी-नब्बे पूर सौ !

लाला जी की ये तुक-ताल
गुणा-भाग से मालामाल
लूटे हैं गुदड़ी के लाल
खिला खिसारी-साँवाँ-जौ !

उल्लू जगा सो गए आप
बन्द तिजौरी में कर पाप
कौवे करने लगे विलाप
फटते ही पूरब में पौ !

उठ-बैठ फिर पलथी मार
लछमी जी के पद चुचकार
बेइमानी का कर ब्यौपार
करती लगी-ठगी से लौ !

03.07.1985