Last modified on 27 जुलाई 2008, at 08:02

रोशनी फूटेगी निश्चित रूप से / शैलेश ज़ैदी

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:02, 27 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलेश ज़ैदी |संग्रह=कोयले दहकते हैं / शैलेश ज़ैदी }} [[Category...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रोशनी फूटेगी निश्चित रूप से।
हम लड़ेंगे कल व्यवस्थित रूप से॥

पारदर्शी है क्षितिज की भंगिमा।
इसको मत देखो सशंकित रूप से॥

हमको पहचानो तुम्हारे वक्ष में।
हम चुभे हैं सारगर्भित रूप से॥

सामयिक हैं सब शिशिर की दहशतें।
आग दहकेगी अबाधित रूप से ॥

जानते हैं सब तुम्हें अच्छी तरह ।
क्या मिलेगा इस प्रचारित रूप से।