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इन्तज़ार / उज्ज्वल भट्टाचार्य

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आएगा
ख़ुशियों से चहकता मौसम
बस, छोटी-छोटी ख़ुशियाँ
हल्की-सी फुहार बनकर
कोपलों के खिलने की ज़मीन बनाएँगी
 
बादलों के पीछे से हल्की सी धूप
मेट्रो में बैठी औसत-सी दिखने वाली युवती की तरह
अचानक मुस्कराकर शर्मा-सी जाएगी
 
और राह चलते सड़क पर
किसी अनजान शख़्स के कन्धे पर थपकी देते हुए
मैं पूछूँगा —
दोस्त, कैसे हो ?

अभी उसकी तैयारी है।