Last modified on 5 नवम्बर 2018, at 00:38

सहोदर / अनुज लुगुन

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:38, 5 नवम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुज लुगुन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

घोड़े अब नहीं रहे
जिन्हें हम घोड़े कहते हैं
वे खच्चर हैं
और गन्दुरा खच्चरों को हाँक रहा है

खच्चर उन जगहों के लिए बोझा ढोते हैं
जहाँ ट्रेक्टर, ट्रोली या ट्रक नहीं पहुँचते
कभी-कभी ये खच्चर
अपनी पीठ पर
सेना के लिए गोला बारूद भी ढोते हैं
खच्चर ऐसे ही सड़कों पर
अपने होने को दर्ज करते हैं

कई बार सोचता हूँ
क्या खच्चर अपने सहोदरों का इतिहास जानते हैं
क्या वे यह जानते हैं कि
कभी हरे घास का मैदान था
जहाँ उनकी आँखें पागुर करती थी
क्या वे यह जानते हैं कि
बोझा ढोने वालों की प्रजाति
इतिहास में हमेशा सुरक्षित की गई है

शाम होते ही खच्चर लौट रहे हैं अपनी लीक पर
गन्दुरा उन्हें हाँक रहा है इतिहास के एक दूसरे मोड़ पर
मैं भी लौट रहा हूँ उसी रास्ते
सबके कन्धे पर बोझा है
लेकिन खच्चरों का क्या कहना
वे तो रोज़ उसी भाव से लीक पर चल रहे हैं

खच्चर घोड़े नहीं हैं
खच्चर घोड़ों के सहोदर हैं
सब बोझा ढोने वाले सहोदर हैं
जैसे कि कुछ इतिहास में दर्ज हैं
जैसे कि कुछ विलुप्त हैं
जैसे कि कुछ अभी चल रहे हैं ।