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साँकल / रजनी तिलक

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चारदीवारी की घुटन
घूँघट की ओट
सहना ही नारीत्व तो
बदलनी चाहिए परिभाषा।

परम्पराओं का पर्याय
बन चौखट की साँकल
है जीवन-सार
तो बदलना होगा जीवन-सार।