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धोबी और गधा / गोपालबाई

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किसी एक धोबी ने कपड़े ले आने ले जाने को।
एक गधा पाला, पर उसको देता थोड़ा खाने को॥
एक बार धोबी कपड़े धो चला घाट से आता था।
कपड़ों से गदहे को उसने बुरी तरह से लादा था॥
पड़ता था रस्ते में जंगल वहाँ लुटेरे दीख पड़े।
डर से होश उड़े धोबी के और रोंगटे हुए खड़े॥
कहा गधे से, ‘अबे भाग चल, देख लुटेरे आवेंगे।
मारें पीटेंगे मुझको वे तुझे छीन ले जावेंगे॥
कहा गधे ने धोबी से तब ‘‘मुझे छीन वे क्या लेंगे?’’
धोबी बोला- ‘‘बड़ी-बड़ी गठरी तुझ पर वे लादेंगे।’’
कहा गधे ने, दया करो मत उनसे मुझे बचाने की।
नहीं नेक भी चिन्ता मुझको उनसे पकड़े जाने की’’॥
‘‘मने लिए एकसा ही है, जहाँ कहीं भी जाऊँगा।
वहीं लदेगा बोझ बहुत, औ थोड़ा भोजन पाऊँगा॥
‘‘मुझे आप के पास अधिक कुछ भी सुख की आशा होती।
संग तुम्हारे तो अवश्य रहने की अभिलाषा होती’’॥
गधा छीन ले गये लुटेरे धोबी मन में पछताया।
कष्ट बहुत से दिये गधे को हा! उसका यह फल पाया॥