मानस-मधुवन मंे आया है सजनि! आज वेदना-वसंत।
विपुल व्यथा की सकरुण सुषमा छाय रही है आज अनंत॥
करुणा-कोकिल सुना ही है अपना विह्वल विकल विहाग।
नयन-कली की मृदु प्याली में भरा हुआ है अश्रु-पराग॥
चलता है उच्छ्वास-मलय नैराश्यों की सौरभ के साथ।
ढुलका रहा विषाद हृदय की हाला भर-भर दोनों हाथ॥
अन्तर के छाले पलाश वन-सम शोभित हैं अरुण अपार।
व्याप्त हो रहा है मधुमय पीड़ाओं के वैभव का भार॥
कितना सुन्दर कुसुमाकर का विश्व-कुंज में आजाना।
पर कितना मादक मेरे मधुवन में उसका मुसकाना॥