मलयज-शीतलता भार लिये, नव-कलिका सा मृदु प्यार लिये।
मम आशा की मधुमय कलियाँ बनकर बसंत विकसा जाना॥
बासंती सी मृदु सुषमा ले पुप्पांे सी मधु लालिमा लिये।
मम सूखे जीवन उपवन में मधु-सीकर बन के बरस जाना॥
शुचि सरस सुकोमल भावों की, कालिन्दी कलित कलोलमयी-
सरस सुकोलम भावों की, कालिन्दी कलित कलोलमयी-
बनकर मेरे कल्पना-देश में, देव! प्रवाहित हो जाना।
नव वीणा की झंकार लिये, मृदु अतीत गौरव-गान लिये-
वह भूला मोहक मधुर गान, बन जीवन-सार सुना जाना॥
शुचि स्वर्ण का विभव लिये सुख का अक्षय आभास लिये-
मेरी अलसाई पलकों पर तुम चिरनिद्रा बन छा जाना।
स्वर्गिक अनन्त सौंन्दर्य्य लिये, क्रीड़ा का हास-विलास लिये-
कोमल अलसित-सुषमा-लज्जित-निज मंजु रूप दिखला जाना॥
वरदानों का उपहार लिये, आशीष-सुधा की धार लिये-
मेरे हृद््-मंदिर में आकर आराध्य! सुशोभित हो जाना।
मुसकानों का संसार लिये, आनन्दमयी झंकार लिये-
पीड़ा से पागल प्राणों को, प्रिय! आकर आह हँसा जाना॥
कमनीय कलित सुविकाश लिये, ऊषा-सा अरुण प्रकाश लिये-
बनकर सुप्रभा-सौभाग्य सूर्य्य ‘नलिनी’ का हृदय खिला जाना।