खड़ी भिखारिन कब से द्वार!
माँग रही है सुखमय प्यार;
टूटा-फूटा मन का खप्पर,
हाथों में लेकर आयी।
दे दो मुझको वह अमूल्य-धन
बड़ी आस लेकर आयी,
आज बहा दो मधुमय धार;
लेने आयी केवल प्यार।
जिसे देखकर हँसे चन्द्रमा-
ऐसा प्यार न मैं लूँगी,
घटता-बढ़ता देख उसे प्रभु,
कैसे जीवन रख लूँगी।
तारों-सा झिलमिल संसार;
मुझे चाहिए ऐसा प्यार।
कहीं पहेली-सा रहस्यमय-
बना न देना जीवन-सार;
पूर्ण स्वच्छ हो और निष्कपट,
देव! हमारा भोला प्यार;
बिना प्रेम के जीवन भार,
दे दो, दे दो अपना प्यार।