Last modified on 30 जुलाई 2008, at 00:11

चांदी खो कर चांद सुनहरा सूरज से जाकर पूछो / विनय कुमार

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:11, 30 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनय कुमार |संग्रह=क़र्जे़ तहज़ीब एक दुनिया है / विनय क...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चांदी खो कर चांद सुनहरा सूरज से जाकर पूछो।
बात ज़रा सी मतलब गहरा सूरज से जाकर पूछो।

तेज़ हवाएँ, शमा जलाने की कोशिश में हम मसरूफ़
सर्द अंधेरा कैसे उतरा सूरज से जाकर पूछो।

रात अगर होती तो बात समझ में सबकी आ जाती
दिन भर कैसे काला कुहरा सूरज से जाकर पूछो।

सभी पहरुए सबके भाले कैसे सूरजमुखी हुए
कौन शहर में देगा पहरा सूरज से जाकर पूछो।

नदी नाम था जिस अल्हड़ लड़की का जाने कहाँ गयी
सारा जंगल गूंगा-बहरा सूरज से जाकर पूछो।

धरती तो सीने में अपनी आग दबाए बैठी है
कैसे सागर बनता सहरा सूरज से जाकर पूछो।