मैं कैसे कहूं
किसी बेलौस आदमी की कहानी
जिसकी जिजीविषा भरी हुई है
और जो महसूस करता है
अपनी आखिरी कैफ़ियत के बाद भी
एक और आदिम युग
ये टूटे हुए चेहरे
दुख की मुक्ति को
स्वयं लड़ते
थक गए हैं
शोषकों के छिपे हुए हाथ
उनके गर्दन पर कसते गए हैं
और ख़ूनख़ोरों के पंजों से ग्रसित
वे चीख़ भी तो नहीं पाते
अपने दर्द को
चुपचाप पी जाते हैं
मौन में अपनी पीड़ा भरी कहानी
बार-बार कह जाते हैं
चारों ओर
दुखभरी कहानियाँ हैं, बन्धु !
मैं कैसे कहूँ
किसी एक बेलौस आदमी की कहानी
जिसमें जिजीविषा भरी-भरी है