जीवन के तमाम रंग
खिलते हैं अरूणाकाश
में
तितलियां उड़ती हैं
पक्षी अपनी चहचहाहटों
से
गूंजाते हैं अरूणाकाश
तड़कर गिरने से पहले
बिजलियां कौंधती हैं
अरूणाकाश में
वहां संचित रहते हैं
सारे राग विराग
दुखी आदमी ताकता है उपर
अरूणाकाश
ठहाके उसे ही गुंजाते
हैं
आंसुओं के साथ मिट्टी
में गिरता
जब भारी हो जाता है दुख
तब उपर उठती आह
समेट लेता है
अरूणाकाश।