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शर्मीली फ़ाइल / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

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ठुमक चली दफ़्तर सरकारी
शर्मीली फ़ाइल
बेचारी

रंगबिरंगी साड़ी में
ज्यूँ नई नवेली ग्राम-वधू सी
बाहर-भीतर चम-चम करती
देख हँसा
खुश हो
चपरासी

बाबू ने फ़ाइल देखी
ज्यों देखे गुंडा अबला नारी

गाँधीजी के फोटो वाला
काग़ज़ बाबू ने खोजा पर
नहीं मिला तो
गुस्से में बोला
फ़ाइल कोने में रखकर

कौन बचायेगा अब तुझको
बम भोले या कृष्ण मुरारी

उसके बाद बताऊँ क्या मैं
बाबू, चपरासी, साहब ने
मिलकर उसको यों लूटा
ज्यों खाया हो मुर्दा
गिद्धों ने

फ़ाइल का मुँह
काला, नीला, लाल किया फिर बारी-बारी

साहब, बाबू जब-जब बदले
तब-तब वह चीखी-चिल्लाई
वर्षों बीत गये यूँ ही पर
कभी किसी को दया न आई

जल कर ख़ाक हुई
इक दिन जब लगी आग दफ़्तर में भारी