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जीने की हवस / शहरयार
अनिल जनविजय
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सफ़र तेरी जानिब था
अपनी तरफ़ लौट आया
हर इक मोड़ पर मौत से साबक़ा था
मैं जीने से लेकिन कहाँ बाज़ आया।