Last modified on 13 फ़रवरी 2019, at 14:29

अन्तर्दाह / पृष्ठ 38 / रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध'

सशुल्क योगदानकर्ता ४ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:29, 13 फ़रवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध' |अनुव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)



इस नश्वरता में बोलो
है कौन अमर संसृति में ?
पर,किसके गीत विहँसते
मेरे उर की झंकति में ? ।।१८१।।

सुख-दुख के महा निलय में
है प्रगट प्रभा पर, खोई
वह ज्योति प्राप्त हो मुझको
यह अर्घ्य दान ले कोई ।।१८२।।

नश्वरता में अविनश्वर
है एक तत्त्व अलबेला
जिसके संग मैंने कुछ दिन
खेला था निपट अकेला ।।१८३।।

ओ देवि ! उदित हो जाओ
मेरे इस हृदय - गगन में
साधना अहो है दुष्कर
पर, मानस मिलन-लगन में ।।१८४।।

वेदना-निशा पर प्यारी!
आनन्द-भरी ऊषा-सी
फैलो मेरे जीवन में
चिर वैभव-अभिलाषा-सी ।।१८५।।