Last modified on 1 अगस्त 2008, at 08:37

आभार / महेन्द्र भटनागर

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:37, 1 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=मृत्यु-बोध / महेन्द्र भटनागर }}...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मृत्यु है;

मृत्यु निश्चित है,
अटल है —

जीवन इसलिए ही तो
इतना काम्य है !
इसलिए ही तो
जीवन-मरण में
इतना परस्पर साम्य है !

मृत्यु ने ही
जीवन को दिया सौन्दर्य
इतना
अशेष - अपार !

मृत्यु ने ही
मानव को दिया
जीवन-कला-सौकर्य
इतना
सिँगार-निखार !

निःसंदेह
है स्वीकार्य —
नश्वरता,
मर्त्य-दर्शन / भाव
प्रतिपल मृत्यु-तनाव !

आभार
मृत्यु के प्रति
प्राण का आभार !