Last modified on 9 मार्च 2019, at 22:52

प्रेम / मनीष कुमार झा

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:52, 9 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनीष कुमार झा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{K...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बाँधो नहीं प्रेम शब्दों में
प्रेम खुला स्वर, लय है

प्रेम साधना की वेदी है
प्रेम भक्ति है, पूजा है
प्रेम चंद्र की शुभ्र किरण है
भाव न इससा दूजा है
प्रेम वासना-गंध रहित है
प्रेम राग मधुमय है

प्रेम बाँटता नहीं गरल, बस
प्रेम सुधा बरसाता है
प्रेम आर्त दीनों के मन की
पीड़ा हरता जाता है
प्रेम लालिमा अरुणोदय की
यह मधुरस संचय है

प्रेम सदा ही जीवन में नित
नव-नव ज्योति जलाता है
प्रेम हृदय के उपवन में नित
नव-नव पुष्प खिलाता है
प्रेम चेतना की सुगंध है
प्रेम मुक्त किसलय है

जीव धरा के, देव स्वर्ग के
सबने ही है प्रेम किया
प्रेम प्रवाहित कल-कल सी है
प्रेम सतत बहती नदिया
प्रेम अखंडित दिव्य भाव है
प्रेम अमर, अक्षय है