Last modified on 11 मार्च 2019, at 01:38

ग़ज़ल / उमेश बहादुरपुरी

दिल के दरद के दवा तो इहाँ शराब न´् हे।
पियेवाला के लगे नीक तो खराब न´् हे।।
केकरो ले ई दुनियाँ न´् छोड़े के चाही।
जीये ले ई दुनियाँ में सिरिफ शबाब न´् हे।।
पियेवाला ....
अउ भी तो ढेर रिश्ता हे जीये के खातिर।
हरेक बात में देबे के इहाँ जबाव न´् हे।।
पियेवाला ....
ढेर फूल हे चमन में खिलल खिलल इहाँ
सुगंध के खातिर सिरिफ गुलाब न´् हे।।
पियेवाला .....
हर हाल में इहाँ तोरा जीये पड़तो जिनगी।
मूड़ी नवा के जीयेवाला आफताब न´् हे।।
पियेवाला ....
हे बेकार के ई जिनगी रफ्तार के बिना।
हो सके जे न´् पूरा ऊ कोय ख्वाब न´् हे।
पियेवाला ....
रुक सकऽ हऽ कभिओ न´् तूँ मंजिल के पहिले।
जेकर जवाब मिल सकऽ हे ऊ लाजबाब न´् हे।।
पियेवाला ....