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जयघोष / महेन्द्र भटनागर

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सारा विश्व सोता है —

इतनी रात गुज़रे

कौन रोता है ?


सुना है —

पास के घर में

मृत्यु का धावा हुआ है,

सत्य है —

कोई मुआ है !

यमदूत के

तीखे छुरे ने

आदमी को फिर

छुआ है !


पहुँचो

अमृत-सम्वेदना-लहरें लिए,

यह आदमी

फिर-फिर जिए !

जीवन-दुंदुभी बजती रहे,

क्षण-क्षण भले ही,

अरथियाँ सजती रहें !