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मृत्यु-दर्शन / महेन्द्र भटनागर

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मृत्यु:

सुनिश्चित है जब;

व्यर्थ इस क़दर

क्यों होते हो

आशंकित,

आतंकित !


मृत्यु से अरे कह दो —

‘जब चाहे आना; आये।’


इस समयावधि तो

आओ,

मिल कर नाचें-गाएँ !

नाना वाद्य बजाएँ !

तोड़ें मौन;

मृत्यु की चिन्ता

करता है कौन ?