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गुरुजन / विजयशंकर चतुर्वेदी

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चींटी हमें दयावान बनाती है

बुलबुल चहकना सिखाती है

कोयल बताती है क्या होता है गान

कबूतर सिखाता है शांति का सम्मान।


मोर बताता है कि कैसी होती है ख़ुशी

मैना बाँटती है निश्छल हँसी

तोता बनाता है रट्टू भगत

गौरैया का गुन है अच्छी सांगत।


बगुले का मन रमे धूर्त्तता व धोखे में

हंस का विवेक नीर-क्षीर, खरे-खोटे में

कौवा पढ़ाता है चालाकी का पाठ

बाज़ के देखो हमलावर जैसे ठाठ।


मच्छर बना जाते हैं हिंसक हमें

खटमल भर देते हैं नफ़रत हममें

कछुआ सिखा देता है ढाल बनाना

साँप सिखा देता है अपनों को डँसना।


उल्लू सिखाता है उल्लू सीधा करना

मछली से सीखो- क्या है आँख भरना

केंचुआ भर देता है लिजलिजापन

चूहे का करतब है घोर कायरपन।


लोमड़ी होती है शातिरपने की दुम

बिल्ली से अंधविश्वास न सीखें हम

कुत्ते से जानें वफ़ादारी के राज़

गाय से पायें ममता और लाज।


बैल की पहचान होती है उस मूढ़ता से

जो ढोई जाती है अपनी ही ताकत से

अश्व बना डालता है अलक्ष्य वेगवान

चीता कर देता है भय को भी स्फूर्तिवान।


गधा सरताज है शातिर बेवकूफ़ी का

ऊँट तो लगता है कलाम किसी सूफी का

सिंह है भूख और आलस्य का सिरमौर

बाकी बहुत सारे हैं कितना बताएँ और...


सारे पशु-पक्षी हममें कुछ न कुछ भरते हैं

तब जाकर हम इंसान होने की बात करते हैं।