Last modified on 24 मार्च 2019, at 06:44

साधो मन के मीत हेराने / बोली बानी / जगदीश पीयूष

सशुल्क योगदानकर्ता ४ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:44, 24 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKRachna |रचनाकार=सुशील सिद्धार्थ |अनुवादक= |संग्रह=बोली...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

साधो मन के मीत हेराने
बादरु बरसै हम रंभिति है यादि कि छतुरी ताने

समउ लै गवा साथी संघी होई का बिल्लाने
अनगैरिन का म्याला टहलै को केहिका पहिचाने

दूरि तलक ना सूझै कउनौ आंखिन आंसु समाने
जी जियरा मा जोति जगावईं अब उइ दिया बुताने

खुले खजाने लूटै दुनिया स्वारथ का रनु ठाने
नये दौर कै बानी बदली बूझौ येहि के माने

नीके मुंह ना ब्वालै कोई दुनिया चलइ उताने
कोई तौ आंखिन मा उतरै आवै तौ समुहाने