Last modified on 18 अप्रैल 2019, at 12:44

पोस्टरबॉय / मनोहर अभय

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:44, 18 अप्रैल 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोहर अभय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सारी नागफनियाँ
नौंच कर फेंक दी हैं
 समूल;
कुचल कर रख दिए हैं
जहर उगलते साँप।
 
हलधरो!
चलाओ हल
उगाओ नई फसलें
निशंक होकर;
काले सागर के
आसपास बने श्रमिक शिविरों में
बंधक बनाने वाले
अब शताब्दियों तक
सिर नहीं उठा पाएँगे।
 
अपने ही बोझ से
धँसक गई है
बर्लिन की दीवार
सिल्करोड पर बिछा दी है
काँटेदार कंक्रीट
खच्चरों की पीठ पर
मसाले लाद कर
आने-जाने वाले सौदागर
नहीं चल पाएँगे
मील दो मील।
 
खूनी चौक पर
हो रहा है उद्घोष
कटी जुबान वाले युवाओं की
भारी भीड़ ने
छीन लीं हैं
किराये के सिपाहियों की संगीनें
कोई बुलडोजर इसे
 कुचल नहीं पाएगा।

दो जून रोटी के क्षुधार्तिओ!
तोड़ दो उन भंडारों के सिंहद्वार
हजारों अनाज की बोरियाँ जहाँ
पड़ी हैं बंदरबाँट के लिए.

वस्तु से विचार पैदा करने वाली
किताब का परिशोधित संस्करण
बाजार में आगया है
सारस्वत साधना के साधको!
खुल कर लिखो
सार्वजनीन खुशियों वाले गीत
तुम किसी के
पोस्टरबॉय नहीं हो।