Last modified on 21 अप्रैल 2019, at 19:18

आदमी लौटकर नहीं आते / काएसिन कुलिएव / सुधीर सक्सेना

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:18, 21 अप्रैल 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=काएसिन कुलिएव |अनुवादक=सुधीर सक्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वसन्त चला जाएगा
चला जाएगा वसन्त फिर लौटने के लिए
अगले साल ऐसे ही शरद भी
वक़्त पर फिर से वापसी के लिए ।
पर मैं जाऊँगा जब भी लौट नहीं पाऊँगा
फिर से ।

लौटते हैं मेघ, घनघोर बरसने के लिए
प्यासी नहीं रहेगी धरती ।
चली जाएगी हिम और फिर लौटेगी
एक दिन ।
बस, मैं नहीं लौटूँगा, एकबारगी जाने के बाद ।

सुबह चली जाती है
और फिर लौटती है ।
दिन जाता है और फिर आता है
बारी आने पर ।
रात जाती है और लौट आरी है फिर
दिन ढलने पर ।

सिर्फ़ आदमी —
आदमी जाते हैं तो
लौटकर नहीं आते ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुधीर सक्सेना