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प्रतिज्ञा-पत्र / महेन्द्र भटनागर

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टूट

गिरने दो

पीड़ाओं के पहाड़

बार-बार

अमत्र्य व्यक्तित्व मैं

अविदलित रहूंगा !

आसमान पर

घिरने दो

वेगवाही

स्याह बदलियाँ,

गरजने दो

सर्वग्रही प्रचण्ड आँधियाँ

लौह का अस्तित्व मैं

अपराजित रहूंगा !


लक्ष-लक्ष

वृश्चिकों के

डंक-प्रहार,

उठने दो

अंग-अंग में

विष-दग्ध लहरें ज्वार

व्रतधर सहिष्णु मैं

अविचलित रहूंगा !