जागो रात में सूरज न आने वाला है
खुशियों की सौगात न लाने वाला है
जंग खुदी के हाथों से ही लड़नी होगी
भगवान कोई अवतार न लेने वाला है
आओ उस आबाद करें गुलिस्तां को
जिसका पत्थर धूल न खाने वाला है
चुनकर हर नींवों से जमा करें पत्थर
जिन ईटों का न ताज बिखरने वाला है
पतझड़ों में कितनी सदियां बीती हैं
पद दर्द मेरा अब चुप न रहने वाला है
मौजे समन्दर1 कुछ-कुछ बातें करती हैं
‘बाग़ी’ गर्म लहू, जब चुप न रहने वाला है