चिरागे मोहब्बत को रोशन बताकर
वो लूटा मेरे घर के दौलत को आकर
गफ्लत में दलितों को गुमराह करके
मिटाया मेरा घर वो मोहलत को पाकर
दलित सल्तनत की वो रौनक नहीं है
बुझे फिर से दिल के दीये को जलाकर
ओझल हुई मेरे घर की ही खुशियां
बुलंद तमन्ना की शोहरत को ढाकर