Last modified on 29 अप्रैल 2019, at 18:07

होली मुबारक / ज्योत्सना मिश्रा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:07, 29 अप्रैल 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्योत्स्ना मिश्रा |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

फागुन इस बार कुछ झिझका हुआ है
पलाश की मुठ्ठियाँ ख़ाली हैं
मौसम दहलीज़ पर
ठहरा हुआ है

सलेटी स्मृतियाँ बहती हैं
गालों पर बन
मटमैली लकीरें.
आँखों में
लिख जाती हैं
उदास नज़्में
तल्ख़ कहानियाँ

बादल दोहरातें हैं बातें
आकाश के ख़ुशशक़्ल माज़ी की
लिये बैठी हूँ
एक अधूरा ख़त
किसी टूटे हुए ख़्वाब का

हवा ठिठकी खड़ी है
बिखर गया शीराज़ा
मुहब्बतों का

मिट्टी-मिट्टी हो गया
समन्दर जज़्बात का

सिर्फ़ यादों के सहारे
रँग नहीं होता मेरे दोस्त !!

होली मुबारक !!