Last modified on 2 मई 2019, at 23:15

जिनगी बेहाल / ब्रह्मदेव कुमार

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:15, 2 मई 2019 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पकड़ी-पकड़ी केॅ, कानी-कानी केॅ,
भौजी सुनाबै छै आपनोॅ हाल।
हमरोॅ करम तेॅ फुटलोॅ छै,
बिना पढ़लें-लिखलें जिनगी बेहाल।

अलबेला पिया हमरोॅ परदेश बसै छै
रूपया भेजै छै, चिट्ठियो भेजै छै।
कŸोॅ भेजै छै, की-की लिखै छै
जानै सकै नै छीं कुछ्छु हाल।

लाजोॅ-शरम सेॅ बोलै नै छीं
दिलोॅ के बतिया खोलै नै छीं।
छोटकी ननदिया, जहर के पुड़िया
लूतरी लारी केॅ करै छै काल।

छोटका देवरवा कुछ नै बताय छै
अंगूठा छाप कही-कही चिढ़ाय छै।
मन करै जरी-डूबी केॅ मरौं
राखी की करतै ई जिनगी बदहाल।

एकरोॅ कौनों उपाय करबै
पढ़ै-लिखै लेॅ हम्हूँ सीखबै।
पढ़ी-लिखी केॅ, सीखी-सीखी केॅ
जिनगी बनैबै आपनोॅ खुशहाल।