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इन्सानियत का पैग़ाम / रणजीत

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अब तो इक मजहब नया चलाना ही पड़ेगा
खुदा की जगह इन्सान को बिठाना ही पड़ेगा।
इन्साँ के लिए इन्सानियत से बढ़कर नहीं है कुछ भी
हर इन्सान को यह पैगाम सुनाना ही पड़ेगा।
तोड़ते आये हैं ज़माने से इक दूसरे के इबादतखाने
अब इबादत की इस बुरी आदत को मिटाना ही पड़ेगा।
किसी ईश्वर के नाम पर मारते-मरते रहे सदियों से
भयजनित इस भ्रम को मन से हटाना ही पड़ेगा।
भगवान के भय से सिखाते रहे हैं ये नैतिकता हमें
निडर विवेक को अब नीति का आधार बनाना ही पड़ेगा।
इतना गिराया है इन्सान को इन कठधर्मियों ने
अब इन्हें धर्म का सही मतलब तो बताना ही पड़ेगा।
यह ठीक है कि कोई भी इन्सान कभी सम्पूर्ण नहीं
पर इन्सानियत का आदर्श तो सामने लाना ही पड़ेगा।