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एक वीभत्स वास्तविकता / रणजीत

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मृगराज !
नर केसरी !!
बब्बर शेर !!!
कितना भव्य बिम्ब है
शक्ति और साहस के शाही अन्दाज़ का।
पर मैंने देखा है कि ‘डिस्कवरी’की फिल्मों में
दरिन्दगी की बुनियाद पर खड़ा
उसका दाम्पत्य जीवन
क्रूर प्रकृति की एक वीभत्स वास्तविकता
मादा शेरनी को सहवास के लिए विवश करने के लिए
यह नरपिशाच
उसके मासूम बच्चों को खा जाता है
चोरी से घुस कर उसकी मांद में
जब वह उनके भोजन की जुगाड़ में निकलती है।
पागलों की तरह भटकती है
वह बिलखती हुई वत्स वंचिता
और फिर से उनकी कामना में
चाटती है उनके हत्यारे का मुंह
और तब वह चढ़ता है शाही अन्दाज से उस पर
यह दृश्य देखते हुए मेरी रूह कांप जाती है
धरती में समा जाना चाहता है मेरे भीतर का वह प्राणीत्व
जो मुझे जैविक रूप से जोड़ता है, उससे।
नर केसरी की शान
और मादा केसरी की आन-बान की कहानियाँ
तड़प-तड़प कर दम तोड़ देती है मेरी आँखों के सामने ही
गर्म रेत में तड़पती हुई मछलियों की तरह।