Last modified on 17 मई 2019, at 23:58

एक बेलाग बात / रणजीत

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:58, 17 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रणजीत |अनुवादक= |संग्रह=बिगड़ती ह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैं ईमानदारी से अपनी दाय
अदा करना चाहता हूँ मेरे देश
अपना सही-सही आयकर
और उस पर तीन प्रतिशत शिक्षा कर भी
कि किसी सुदूर गाँव की पाठशाला की छत
बरसात में टपके नहीं
और इतमीनान से अपना पाठ पढ़ सकें
वहाँ गरीबों, दलितों और अल्पसंख्यकों के भी बच्चे
कि मेरे गाँवों और शहरों की सड़कें हों गड्ढा मुक्त
कि उन पर दौड़ती हुई गाड़ियों की
कमर न टूटे अचानक
कि उन पर अपनी साइकिलों से स्कूल-कॉलेज जाती हुई
किशोरियों को धचके न खाने पड़ें
कि किसी बस्ती, किसी गांव, किसी मोहल्ले में
छाया न रहे घुप्प अंधेरा
मेरे अपार्टमेन्ट की भी लिफ्ट रुकी न रहे
बिजली कटौती के कारण
और मुझे अपनी दुखती टांगों से हांफते हुए
चढ़नी न पड़ें चार-चार सीढ़ियाँ
मैं अपने हिस्से का पूरा-पूरा आयकर भरता हूँ हर साल
उसका सही सही हिसाब लगा कर, मेरे देश
तुम्हारी ही दी हुई आय से
कि खुशहाल बनो तुम
यानी मैं और मेरे जैसे तमाम तमाम लोग
वे भी, जो अभी भी बहुत पीछे छूट गये हैं
विकास की इस दौड़ में
कि मेरी तरह ही पीने का स्वच्छ पानी मिल सके
ऊँचे पहाड़ों और सुदूर रेगिस्तानों में
रहने वाले मेरे भाई-बहिनों को
कि तीन-तीन किलोमीटर तक
पानी की गगरी न ढोनी पड़े
उत्तराखंड और जैसलमेर की
काम के बोझे से वैसे ही लदी हुई औरतों को
कि किसी भी गाँव में फसल बरबाद होने पर
खुदकुशी न करनी पड़े
किसी भी किसान को
पर तुम हो कि मेरे देश जो
मेरे, मेरे सहवासियों के दिये हुए कर से
लोगों के भोजन, पानी, घर, बिजली, सड़कों की
व्यवस्था करने की बजाय
नये नये हथियार जुटाने
पड़ोसियों पर धौंस जमाने
मंत्रियों, अधिकारियों के बंगले सजाने
उनके लिए गाड़ियों
और हेलीकाप्टरों के काफिले मुहय्या कराने
होनहार खिलाड़ियों की सुविधाएं जुटाने की बजाय
कामनवेल्थ खेलों की शानशौकत बढ़ाने
चालीस करोड़ का गुब्बारा उड़ाने
तैयारियों के नाम पर अन्धाधुंध कमीशन खाने
और यहाँ तक कि
राज्य सरकारों की सलामती के लिए
मंदिरों-मठों में
विशेष पूजा-अर्चना आयोजित कराने में
भस्म कर रहे हो
उड़ा रहे हो उसे
पूर्व प्रधानमंत्रियों की चुनावी उड़ानों पर, और
सरकारों की तथाकथित उपलब्धियों के
पृष्ठांतरगामी विज्ञापनों पर।
(जिनके बल पर खरीदते हो
मेरे देश के अखबारों की आलोचनात्मक आवाज़)
लुटा रहे हो उसे
बड़े-बड़े पूंजीपतियों के कारखानों को दी गयी
सस्तीदर बिजली पर
उन्हें पांच-पांच बरस तक दी जाने वाली आयकर छूटों पर
सोचो, तुम्हीं सोचो मेरे देश कि यह कहाँ का न्याय है
और पूछो तुम्हारे नाम पर राज करने वाली
इन सरकारों से, इनके नेताओं से
कि क्या वे चाहतें है कि इस देश का आम आदमी भी
भ्रष्ट और बेईमान हो जाए उन्हीं की तरह
घपला करने लगे अपने देयों के हिसाब में
क्योंकि अगर इसी तरह बर्बाद करते रहे वे देश का पैसा
हथियारों की खरीद में, शानशौकत के प्रदर्शनों में
खाते रहे सौ प्रतिशत कमीशन
और जमा करते रहे स्विट्जरलैण्ड के बैंकों में
तो कौन ईमानदारी से देना चाहेगा अपना दाय?
क्यों हमें बेईमान बनाने पर तुले हैं वे
पूछो उनसे,
तुम्हीं पूछ सकते हो, मेरे देश !
क्योंकि तुम्हीं उनके मालिक हो।