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चूहा मोटा / राकेश रंजन

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दिल का खोटा चूहा मोटा
ले भागा बन्दर का लोटा
लुकता-छिपता निकला झटपट
लोटे को लुढ़काता खटपट
गया छिपाने झड़बेरी की झाड़ में ।

वहाँ झाड़ में बागड़ बिल्ला
झपट पड़ा चूहे पर चिल्ला
सबक सिखा दूँ आ जा बेटा –
कहकर मारा कड़ा चमेटा
उड़ा हवा में चूहा अटका ताड़ में ।

वहाँ एक था बाज बहादुर
गए काम से आज बहादुर –
कहा बाज ने – सुनो भतीजा
बुरे काम का बुरा नतीजा
चलो तुम्हारी असली जगह तिहाड़ में ।

चूहा बोला दाँत निपोरे –
मुझे न कोई चोर कहो रे
सच्चाई का पहने चोला
मैं फकीर हूँ लेकर झोला
निकल जाऊँगा रहने किसी पहाड़ में !