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प्रजापति राम / अंजना टंडन

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जानते थे राम

कैकेयी के मन का मैल
फिर भी माँ का मान रखा,

शबरी के झूठे बेर
फिर भी भावों का संज्ञान सहेजा,

केवट की छलिया बातों का स्नेह
फिर भी भक्त का प्रेम दिखा,

शिला के अतीत का राज
उदारमना अहिल्या पर पैर धरा,

क्या नहीं जानते थे वह
वैदेही का एकनिष्ठ अनुराग
जो चली थी हर पग पर साथ

सच है राजन
जन का अधिक
अभिजन का बहुत कम होता है,

तभी तो प्रजापति कहलाता है।