सूखे पत्तों को बुहारते हुए
दुख जाती थी कमर
पके फलों के टपकने से
पट जाता था खलिहान ।
अब न घनी छाँव है
न ठण्डी हवा
आज उसके न होने से
कितना उदास है
पूरा गाँव ...।
सूखे पत्तों को बुहारते हुए
दुख जाती थी कमर
पके फलों के टपकने से
पट जाता था खलिहान ।
अब न घनी छाँव है
न ठण्डी हवा
आज उसके न होने से
कितना उदास है
पूरा गाँव ...।