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सुन बंजारन / कर्मानंद आर्य

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लिखते लिखते चुक जाऊंगा
गीत विरह के गीत मिलन के
मिलना आकर उसी द्वार पे
जिधर पड़े थे कोमल पग वे
जिधर धुली थीं साँसे तेरी
सुन बंजारन !