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इन्द्रावती / पूनम वासम

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भद्रकाली के अन्तिम छोर पर
घुटनों तक डूबकर
इन्द्रावती नदी के पानी में
मैं महसूस कर लेती हूँ
बस्तर का सारा सच !

मुझे पता है
इन्द्रावती नदी सबकुछ जानती है
जानती है इन्द्रावती
कि रोती है चुपके- चुपके
जब उस पर सवार होकर
गुज़र जाता है
लाल आतँक का साया
ठहर जाती है सिहरकर
वहीं दुबकर
कि पता है अब,
उसकी कोख़ का रंग हो
जाएगा लाल !

ठिठककर रुक जाती है
इन्द्रावती नदी
बहते-बहते अटक जाते हैं
उसके कई साज
कि पता है अब,
बान्धी जाएगी वो ज़ंजीरों में
और ठहर जाएगा उसका
यूँ अनवरत बहते रहना !

शान्त-शीतल बहते-बहते
चौक कर नींद से अचानक
जाग उठती है इन्द्रावती
कि पता है अब,
होगा शोर, बहुत शोर
रौन्दी जाएगी, मसली जाएगी
और फिर उठाकर
पटक दी जाएगी
कहीं, किसी महासागर में !

कितना कुछ सहती है
इन्द्रावती नदी
कालाहाण्डी से भद्रकाली के
अन्तिम छोर तक !

तभी तो घुटनों तक डूबकर
इन्द्रावती नदी के बहते पानी में
मैं महसूस करती हूँ
बस्तर का सारा सच !
बस्तर का सारा सच !