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जिल्द / संतोष श्रीवास्तव

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मेरी जिंदगी के साल दर साल
जैसे किताब के पन्ने.....
हर पन्ना आश्चर्य ,हादसा और पीड़ा की
समवेत दास्तान............
कब खत्म होगी यह किताब ???
कब मेरे नज़दीक होगा
आँख मूंदकर खोला गया वो पन्ना
जिस पर ज़ख्मों के सिरे
सिरे से गायब होंगे
और मेरी टूटन गवाह होगी
कि जुगनुओं को करीब ले
मैंने अंधेरे पार किए हैं
और अरमानों को गलाकर,कूटकर ,छानकर
उसके रेशों से
किताब की जिल्द बनाई है