Last modified on 20 जून 2019, at 23:32

बहनें / अमित धर्मसिंह

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:32, 20 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमित धर्मसिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बहनें शांत हैं
सौम्य और प्रसन्नचित्त भी
उनके चेहरे की उजास
कम नहीं हुई
दुनियाभर की
झुलसाहट के बाद ।

बहनें
हमारे हाथ में
बाँधती हैं रक्षासूत्र
करती हैं कामना
हमारी सुरक्षा की ।

बहनें हमारे घर में नहीं रहतीं
ख्याल में नहीं आतीं
सपने में भी कहाँ आती हैं बहनें
पता नहीं
किस चोर दरवाज़े से
ले जाती हैं हमारी बलाएँ ।

माँ की नसीहत
पिता की डाँट
भाई की झल्लाहट के बाद
खुश दिखतीं हैं बहनें
हमारी ख़ुशी के लिए।

हमारी ख़ुशी के लिये
अपनी ख़ुशी
अपने सपने
अपना मन मारती हैं बहनें

बहनें हमारे पास नहीं
साथ होती हैं
अपनी उपस्थिति
दर्ज़ कराये बगैर ।

सच !
हमसे छोटी हों
या बड़ी
हर हाल में
हमसे बड़ी
होती हैं बहनें ॥