Last modified on 22 जून 2019, at 19:10

जीवाशा / कुमार मंगलम

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:10, 22 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार मंगलम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अंधेरी रातों के निचाट
सूनेपन में
तानपुरे की सी
झींगुर की आवाज
जीवाशा है।

जेठ की भरी दुपहरी में
जब गर्म हवाओं का शोर है
चारो-ओर
तभी बर्फ-गोले वाले की
घंटी की आवाज
जीवाशा है।

ठिठुरती सर्द रातों में
मड़ई में रजाई में पड़े पड़े
जब अपनी दाँत ही
कटकटा रही हो
रोते कुत्ते की करुण किकियाहट
जीवाशा है।

जीवन के कठिनतम समय में
भी
बची रहती है
एक जीवाशा।