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गोधूलि / कुमार मंगलम

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ज्ञान और मूर्खता का सन्धि-स्थल

मूर्खता जब ज्ञान पर
हावी होने लगती है
धीरे-धीरे
समाप्त होने लगती है प्रज्ञा
नहीं कर पाते आप तर्क
एक अकुण्ठ श्रद्धा-भाव से
उपजती है मूर्खता
ज्ञान की रक्तिम आभा को
भस्मीभूत कर
उपजता है अन्धेरा
तब जन्मते है मूर्ख

मूर्खों के साम्राज्य में
नहीं जगह है
बुद्ध, गैलीलियो, कोपरनिकस, कबीर और मार्क्स की

अन्धेरे का भी अपना प्रकाश होता है
जिसे अक्सर लोग
ज्ञान की चकाचौंध समझ लेते हैं
वे नव्यता को नकार देते हैं
वे अपने खोल में जीते हैं

उस अन्धेरे में पलता हैं कहीं न कहीं
ज्ञान का विचार
कि उसका तेज अपने को समेट लेता है
धीरे-धीरे टूटता है
अन्धेरे का आवरण

फैलता है प्रकाश भी उसी तरह
जैसे अपने को समेट लेता है
गोधूलि और फजेरे का वक़्त एक सा होता है
अन्तर सिर्फ़ इतना कि

गोधूलि की प्रकृति उदास है
तो भोर की उल्लसित ।