दिन गुज़रते गए, रात ढलती गई
ज़िन्दगी करवटें तो बदलती गई ।
वो क़िस्से-कहानी, वो बारिश का पानी
वो काग़ज़ की कश्ती, रुत वो सुहानी ।
उछलना, लपकना फिसलकर वो गिरना
वो नन्ही हथेली पे, बूँदें पकड़ना ।
कबड्डी, वो चीका, वो लट्टू, वो गोली
वो आँखों में सपने, वो बच्चों की टोली ।
वो मेला, वो झूला, वो सर्कस, वो जोकर
टहलना, मचलना, वो बेफिक्र होकर ।
वो सरसों, वो धान, और गेहूँ की बाली
वो माथे पे सिकुड़न, वो जेबें भी ख़ाली ।
अरुणमय वो बेला पुरानी हुई अब
वो दिन मेरे प्यारे, कहाँ खो गए सब ।